जान निकलती गई, क़ब्र खुदते रहे। यार जस्न का, म्यूजिक यू बजते रहे।। आप बिति का, सफर ए यू चलता रहा। बदचलन ए सत्ता, ठिठोली करते रहे।। पेट के तबाही ने, जब सिसक रो रहे थें। अंगराईयो में गिरिगिट, रंग बदलते रहे।। मौन में मन पड़ी, आत्मा कुरेदता रहा। चंचल भावना के लुटरे, भाव लूटते रहे।। चिराग बुझा सा, रात पूस दिखने लगी। मातम छाकर, शहर से यूं भटकते रहे।। आशीष ''अनुपम'' ©Ashish anupam #बदचलन# जुमले# #WorldOrganDonationDay #Question #quite