आकांक्षाओं की आभाव ग्रस्तता हमें अंधकार मे ले जा सकती है और सभी आकांक्षाएं अंधी हो सकती है अगर उन्हें ज्ञान का काढ़ा न पिलाया जाय लेकिन बो ज्ञान भी अयोग्य घोषित हो जाता है अगर उसके साथ कर्म को उपेक्षित रखा जाय जबकि वो कर्म भी खोखला साबित हो सकता है ज़ब तक उस कर्म को प्रेम की चाशनी मे न घोल दिया जाय क्योंकि प्रेम और कर्म को जोड़ देने क़े बाद जीवन की कर्मभूमि और तपोभूमि को सुवासित वातायन दिया जा सकता है ©Parasram Arora सुवासित वातायन....