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जो निभा नहीं सकते तो पास आते क्यों अपना बना नहीं स

जो निभा नहीं सकते तो पास आते क्यों
अपना बना नहीं सकते तो दिल लगाते क्यों
जो निभा नहीं सकते.....
जख्मी बनाके मरहम लगाने से क्या फायदा
कैद करके ज़मानत कराने से क्या फायदा
कांटा चुभा के तुम आखिर तरस खाते क्यों
जो निभा नहीं सकते......
मेरी चाहत में कमी थी या तुम्हारी पसंद में
फूल में खराबी थी या फूल के सुगंध में
दूरियां रख कर फिर अपनत्व जताते क्यों
जो निभा नहीं सकते.....
जी भर गया है ज़ख्म से तो तलाशना क्या
गर डर गए हो जमाने से तो तराशना क्या
ढलते हुवे "सूर्य" से निगाह लड़ाते क्यों
जो निभा नहीं सकते......

©R K Mishra " सूर्य "
  #जो निभा नहीं सकते

#जो निभा नहीं सकते #कविता

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