#ग़ज़लغزل: ३१९ ------------------------- 2122-1122-1122-22 माँ ये कहती है बुढ़ापा भी दग़ा देता है जिसको भी देखो वही आके रुला देता है //१ याद रखता है बशर दौरे गुज़श्ता को मगर वो फ़रिश्ता है जो माज़ी को भुला देता है //२ रूह सिलती है हर इक लम्हा बदन का कपड़ा वक़्त जिसपे किसी दिन कैंची चला देता है //३ अपने नाक़रदा फ़रायज़ की नदामत के सबब आदमी लाश को अच्छे से सजा देता है //४ रिज़्क़ देता है ख़ुदा किर्मों को चाहे तो मगर अच्छे अच्छों को वो मिट्टी में मिला देता है //५ शाहे मख़लूक़ का अदना सा हूँ नौकर मैं ऐ 'राज़' भर के दुन्या भी जो मुट्ठी में उड़ा देता है //६ ~राज़ नवादवी® ©Raz Nawadwi #worldpostday