मैंने कब. कहा था मेरा जन्म इसी पुण्य भूमि पर हो न ही मैंने इस ऊंचे घराने क़ो चाहा था न मैंने किसी मजहब क़ो अपना कहा था ज़ुबान ज़ो मुझ पर लादी गई वही अंत में मेरी भाषा बनी आज ज़ो कुछ हूं मै.. वो मै हूं नही ये मजहब ये देश ये जुबां सबकुछ मुझ पर लादा गया काश मै जन्मा होता वहाँ जहाँ कोई सीमा रेखा नही होती जहाँ सिर्फ इंसानियत ही एक मात्र मजहब होता जहाँ ये टुकड़ो में बंटा.. खोखला मजहबी रस्मो में बँधा इंसान न होता ©Parasram Arora मैंने कब कहा था?