बहुत सोचा मैंने आपके बारे में कि अब मुझे सोचना नही है आहटे इश्क़ की देती रही सदाएँ मगर इस बार मुझे मुड़ना नही है वो गली जहा बशर होता था मेरा उस गली के सामने रुकना नही है एक दफ़ा फिर दिल बग़ावती ना हो जाए आँखों को वो सूरत देखना नही है तुम्हारे फैसलों को सदाक़त मान ना लू इसलिए तुम्हारे फैसलों को अब सुनना नही है और भी रंज-ओ-ग़म है जां लुटाने को इश्क़ में तो मुझे मरना नही है ©क्षत्रियंकेश बग़ावती!