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परवाह ------ ख़ामोश होती जुबाँ में अब भी उनके लिए

परवाह
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ख़ामोश होती जुबाँ में अब भी उनके लिए अल्फ़ाज़ बाक़ी है ज़िंदा लाश बन चुकी जिस्म मगर सीने में अब भी उनके लिए धड़कन की रफ़्तार बाक़ी है

नज़रों से हर नज़ारा ओझल हो चला है मगर आँखों में अब भी उनके आने की आस बाक़ी है न जाने साँस और जिस्म कब जुदा हो चले मगर उनके दिल में पनाह पाने का विशवास अब भी बाक़ी है

एक अरसे से दर्द जीने का अंदाज़ बना बैठा है मगर अब भी उनके लिए चहरे पर मुस्कान बाक़ी है हुनर देख दुनिया ने सर आँखों पर बैठा रखा है मगर अब भी उनकी जुबाँ से तारीफ़ सुनने की चाह बाक़ी है

जज़्बात सारे बयाँ कर दिए मगर अब भी उनके लिए कुछ ख़ास अनकहे एहसास बाक़ी है कल रहे ना रहे मगर दुआ में उनका नाम रहे अब भी उनके लिए ये अरदास बाक़ी है

मनीष राज

©Manish Raaj
  #परवाह