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हौले-हौले-से हर इक शाम खुला करती थी एक खिड़की जो मे

हौले-हौले-से हर इक शाम खुला करती थी
एक खिड़की जो मेरे नाम खुला करती थी

कब भला होते थे इस शहर में इतने शाइर
कब भला ज़ुल्फ़ सर-ए-आम खुला करती थी?

©Ghumnam Gautam #हौले_हौले 
#शाम #शहर #शाइर #खिड़की 
#ghumnamgautam
हौले-हौले-से हर इक शाम खुला करती थी
एक खिड़की जो मेरे नाम खुला करती थी

कब भला होते थे इस शहर में इतने शाइर
कब भला ज़ुल्फ़ सर-ए-आम खुला करती थी?

©Ghumnam Gautam #हौले_हौले 
#शाम #शहर #शाइर #खिड़की 
#ghumnamgautam
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Ghumnam Gautam

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