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मुद्दई भी हमीं, मुल्ज़िम भी हमीं, ये रस्म-ए-अदातल ठ

मुद्दई भी हमीं, मुल्ज़िम भी हमीं,
ये रस्म-ए-अदातल ठीक नहीं ! -1

साथ अपने वो सब राहतें ले गया,
इन लबों से हँसी लापता हो गई ! -2

खोना है अगर चैन तो फ़िर दिल लगाइए,
है जो मज़ा तड़प में वो क़रार में नहीं ! -3

चाह रखोगे जो, वो मिलेगा तुम्हें,
जो ना सोचा किसीने वो चाह कीजिये ! -4

जैसी हुई हिदायत, वैसी गुज़ारी हमने,
न जाने है गुनाह या सवाब ज़िन्दगी ! -5

इश्क़ सारे सवालों का इकलौता हल है,
एक दफ़ा ये पहेली भी हल कर के देखो ! -6

इंसाफ़ की मीज़ान पे गर तौलिये ख़ुद को,
आदिल भी तेरे अद्ल के हो जायेंगे क़ाइल ! -7

जी-हुज़ूरी का दौर है 'अल्फ़ाज़' इस क़दर,
तोड़ दिया जाऊँ अगर मैं आईना हो जाऊँ ! -8

इस दिल की चाहतों का आलम तो देखिये,
सूरत के बाद 'अल्फ़ाज़' को सीरत भी चाहिए ! -9

इस राख में सुलगते हैं राज़ अब भी बाक़ी,
एहसास बुझ गए हैं, ‘अल्फ़ाज़’ अब भी बाक़ी ! -10


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार
स0स0-9231/2017 मुद्दई भी हमीं, मुल्ज़िम भी हमीं,
ये रस्म-ए-अदातल ठीक नहीं ! -1

साथ अपने वो सब राहतें ले गया,
इन लबों से हँसी लापता हो गई ! -2

खोना है अगर चैन तो फ़िर दिल लगाइए,
है जो मज़ा तड़प में वो क़रार में नहीं ! -3
मुद्दई भी हमीं, मुल्ज़िम भी हमीं,
ये रस्म-ए-अदातल ठीक नहीं ! -1

साथ अपने वो सब राहतें ले गया,
इन लबों से हँसी लापता हो गई ! -2

खोना है अगर चैन तो फ़िर दिल लगाइए,
है जो मज़ा तड़प में वो क़रार में नहीं ! -3

चाह रखोगे जो, वो मिलेगा तुम्हें,
जो ना सोचा किसीने वो चाह कीजिये ! -4

जैसी हुई हिदायत, वैसी गुज़ारी हमने,
न जाने है गुनाह या सवाब ज़िन्दगी ! -5

इश्क़ सारे सवालों का इकलौता हल है,
एक दफ़ा ये पहेली भी हल कर के देखो ! -6

इंसाफ़ की मीज़ान पे गर तौलिये ख़ुद को,
आदिल भी तेरे अद्ल के हो जायेंगे क़ाइल ! -7

जी-हुज़ूरी का दौर है 'अल्फ़ाज़' इस क़दर,
तोड़ दिया जाऊँ अगर मैं आईना हो जाऊँ ! -8

इस दिल की चाहतों का आलम तो देखिये,
सूरत के बाद 'अल्फ़ाज़' को सीरत भी चाहिए ! -9

इस राख में सुलगते हैं राज़ अब भी बाक़ी,
एहसास बुझ गए हैं, ‘अल्फ़ाज़’ अब भी बाक़ी ! -10


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार
स0स0-9231/2017 मुद्दई भी हमीं, मुल्ज़िम भी हमीं,
ये रस्म-ए-अदातल ठीक नहीं ! -1

साथ अपने वो सब राहतें ले गया,
इन लबों से हँसी लापता हो गई ! -2

खोना है अगर चैन तो फ़िर दिल लगाइए,
है जो मज़ा तड़प में वो क़रार में नहीं ! -3

मुद्दई भी हमीं, मुल्ज़िम भी हमीं, ये रस्म-ए-अदातल ठीक नहीं ! -1 साथ अपने वो सब राहतें ले गया, इन लबों से हँसी लापता हो गई ! -2 खोना है अगर चैन तो फ़िर दिल लगाइए, है जो मज़ा तड़प में वो क़रार में नहीं ! -3