नमस्कार! मैं हूँ झमाझम सिंह और आप देख रहे हैं #वर्षा_तक! आज आपको ले चलता हूँ उस सड़क तक, जो टूट कर भी अटूट है अभी तक। तो आइए हम मोहतरमा सड़क से जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर उनके साथ हुआ क्या था... - हाँ तो मिस सड़क! आप हमे सबसे पहले यह बताइये कि टूटने के बाद कैसा महसूस कर रही है? - देखिये! हमें गर्व हो रहा है। हमारी छाती चौड़ी हो गयी है, मस्तक ऊंचा हो गया है, हमारे बाजू फड़क रहे हैं... हमें गर्व है अपने उस हिस्से पर जो पानी के साथ बह गया। आज उसी की देन है जो आपके जैसे हजारों लोग हमें देखने आये हैं। हर जगह हमारी ही चर्चा है, हर आदमी हमें दया, करुणा, श्रद्धा, सम्मान की दृष्टि से देख रहा है। सुबह से अब तक मेरे पचहत्तर इंटरव्यू हो चुके हैं, आप छिहत्तरवें हैं। इसलिए हम कहना चाहेंगे कि हमारा वह हिस्सा बहा नहीं है, अमर हो गया है। हम उसे शत शत नमन करते हैं। - हैं....? यह आप क्या बोल रही हो मोहतरमा? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। - तो तुम बताओ ससुरे, आदमी हो कि पजामा? अबे इधर पानी हमारा पि@@ड़ा तोड़ कर धुंआधार बहे जा रहा है, और तुम पूछ रहे हो कि कैसा लग रहा है? अबे हमारी दशा उस मुख्यमंत्री जैसी है जिसके विधायकों को विपक्षी दल ने तोड़ लिया हो। कब सरकार गिर जाएगी पता नहीं, और तुम पूछते हो कि लग कैसा रहा है? लगने के नाम पर हमें केवल मोशन लग रहा है, वह भी लूज वाला... समझे न? - अच्छा अच्छा! यह छोड़िये, आप हमें यह बताइये कि आप टूटे कैसे? - देखिये, हम टूटे क्योंकि हमारा दिल टूट गया। एक ऐसा समय भी था कि पानी हमारा दीवाना था, और आज का हाल यह है कि वही पानी मेरी हड्डी पसली एक कर रहा है। मेरा सम्पर्क पथ नहीं टूटा, मेरा दिल टूटा है। मैं करूँ तो क्या करूँ? - नहीं नहीं! मैं यह पूछ रहा हूँ कि आप एकाएक टूट गए, या धीरे धीरे टूटे? मतलब पहले नीचे से टूटे या ऊपर से टूटे? दाहिने से टूटे या बाएं से? - देखिये पानी ने दाँयी ओर से धक्का मारना शुरू किया था। पहले तो कुछ देर बड़े प्रेम से.... -रुकिये रुकिये! आपने कहा कि पानी ने दायीं ओर से धक्का दिया, इससे यह सिद्ध होता है कि पानी दक्षिणपंथी है। सचमुच इस देश मे दक्षिणपंथी ताकतें इतनी मजबूत हो गयी हैं कि आदमी तो आदमी सड़कों का भी देश में रहना कठिन हो गया है। खैर... तो आप अपने टूटने के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं? सरकार को या ठेकेदार को, या दक्षिणपंथी ताकतों को... - मेरी क्या मज़ाल जो मैं किसी को दोषी मानूँ? मैं तो लोकतंत्र की सड़क हूँ, मेरी उंगली की औकात बस इतनी है कि वह evm दबाएगी, वह किसी पर उठ नहीं सकती। वैसे भी जिस शब्द की तुक सरकार से मिल रही हो उसपर उंगली नहीं उठाई जा सकती। जैसे ठेकेदार, पत्रकार, हवलदार, समझदार, जमींदार, सार... और भी हैं, आप सोच के देख लीजिए। - अरे आप सरकार के बारे में कुछ तो कहिये... सरकार की ही जिम्मेदारी थी न आपकी देखभाल करने की? क्या वह दोषी नहीं? - देखिये मेरे हिसाब से दोषी केवल और केवल पानी है। उसी ने धक्का मार मार कर मेरी कमर तोड़ी है। सरकार के बारे में तो मैं केवल इतना कहूँगी । " यह लोकतंत्र की गोटी है, सट से उलट जाती है.. कहानी इश्क की लम्बी भी पल में सलट जाती है। कभी सरकार से उलझो तो इतना सोच कर उलझो अब अच्छी सड़क पर भी एक्सयूबी पलट जाती है।" आगे तो आप समझ ही रहे हैं। अब मैं और कुछ नहीं बोलूंगी। नमस्कार... - तो ये थी मोहतरमा सड़क। जिनका कुछ हिस्सा आज मूसलाधार बारिश में बह चुका है। इनके जले पर नमक लगाने के लिए आप हमारा धन्यवाद कीजिए और हमारी रिपोर्टिंग का मजा लीजिए। #वर्षा_तक के लिए कैमरामैन चौपट लाल के साथ मैं झमाझम सिंह... शिवपाल राजपुरोहित✍️🎤 #सड़कछाप_रिपोर्टिंग #वर्षा #सड़क