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shivpalrajpurohi9743
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Shivpal Rajpurohit

#अध्यापक #लेखक "" बहुत ज्यादा व्यस्त अपने आप में""

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Shivpal Rajpurohit

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©Shivpal Rajpurohit
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Shivpal Rajpurohit

#अनिश्चितकालीन अवकाश
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Shivpal Rajpurohit

................. #Midnight #Dark #Life
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Shivpal Rajpurohit

हिंदी दिवस विशेष....

एक बार तीन दोस्त चाइना गए। तीनों को कामचलाऊ अंग्रेजी आती थी लेकिन उन दिनों चाइना में अंग्रेजी का उतना चलन नही था। तीनों एअरपोर्ट से बाहर आए और जहां उन्हें जाना था वहाँ के बारे में पूछताछ करने लगे। लेकिन भाषा समझ में नहीं आने के कारण उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।किसी चायनीज से पूछते तो वो चीं च्याऊं चीं च्याऊं कर के निकल लेता। और वो तीनों एक दूसरे का मुंह देखते। परेशान हो गए।

उनमें से एक थोड़ा तिकड़मी था। उसने अपने साथी दोस्तों से कहा कि वो अपना-अपना पेन उसे दे। उन्होंने पेन दे दिए। दो पेन उनके और एक अपना हाथ में लेकर सड़क के किनारे खड़ा हो गया और चिल्लाने लगा.....

"पाँच का तीन, पाँच का तीन......."

थोड़ी देर बाद में उसे इस तरह चिल्लाते हुए देख कर एक व्यक्ति उसके पास आया और कहा-

"बेवकूफ आदमी, यहाँ ऐसे कौन तेरे पेन खरीदेगा"

उसने पेन फेंक कर झट से उस आदमी का हाथ पकड़ा और कागज दिखाते हुए कहा- 

"श्रीमान मैं आपको ही ढूंढ रहा था, कृपया यह एड्रेस बताए!"
- #Hindidiwas
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Shivpal Rajpurohit

............... #Hindi #HindiDiwas2020
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Shivpal Rajpurohit

................................ #Love #waiting #waitingforyou 
#तेरा #इन्तजार #प्यार
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Shivpal Rajpurohit

SP
......................... #Love #teriyaden #Midnight
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Shivpal Rajpurohit

शिवपाल राजपुरोहित✍️🎤 #Kangna
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Shivpal Rajpurohit

आज फिर गांव की आबोहवा से ........ 

कुछ दिनों बाद आज मौसम साफ हुआ है। आसमान में तारे भी साफ दिखाई दे रहे हैं। दो दिन से कलम की जगह कुदाली से कविताएँ, कहानियां लिख रहा हूँ और इसी दरम्यान न चाहते हुए भी जब कट गए कुछ धान के पौधे तो एहसास हुआ कि कुदाली की धार भी कलम की धार से कम नही होती है। खैर.... आज मौसम बड़ा सुहावना है, घर से बाहर, खेत में खुले आसमान के तले सोने का आनन्द ही अलग है। ठंडी हवा धीरे धीरे चल रही है इससे मौसम के मिजाज में थोड़ी ठंडक घुल रही है। आसपास के पेड़ पौधे गहरी नींद में सो रहें है और मैं चारपाई पर लेटे हुए धीरे-धीरे ग़ज़लें सुन रहा हूँ। 

"हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह..." ये ग़ज़ल बस अभी-अभी ख़त्म हुई है।

"चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला.." अब यह ग़ज़ल बज रही है। 

पहली बार में मुझे यह ग़ज़ल बहुत से थोड़ी कम पसन्द आई थी मगर आज जब दोबारा सुन रहा हूँ तो बहुत से थोड़ी ज़्यादा पसन्द आ रही है। दरअसल, ग़ज़लों की एक ख़ासियत होती है कि आपको पहली बार में कोई ग़ज़ल उतनी पसन्द नहीं आती मगर जब आप उसे दोबारा सुनते हैं तो वही ग़ज़ल आपको अच्छी लगने लगती है।

जैसे-जैसे ग़ज़लें बदल रही हैं, मेरा मूड भी बदल रहा है। मैंने देखा है, ग़ज़लें सुनने का मन अक्सर शाम को करता है या फिर रात में, जब हमारा दिल फुर्सत में होता है। फुर्सत में ही हमें "उनकी" याद भी आती है। वो एक ग़ज़ल भी तो है...
       
"दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा..जब दीवारों से धूप ढली, तुम याद आए..." 

आज सुबह से खेत में ही था दिनभर खेत में काम करने के दरम्यान भी अनगिनत विचारों की उधेड़बुन चलती रही। कभी किसी घास फूस को लेकर, कभी पेड़ो पौधों को लेकर , कभी आसपास विचरण करते पशु पक्षियों को तो कभी खेत में उग आई ककड़ी की बेल और बाजरे के पौधे के आलिंगन को देख बहुत सी कविताएं बनी और बिखरी।
लेकिन अभी जैसे ही फुर्सत मिली तो सुनने लग गया गजलें, आज तो मच्छरों की भिनभिनाहट और किरकीच्चियों की कर्कश ध्वनियां भी मधुर लग रही हैं ऐसा लग रहा है मानो ये भी गुलाम अली खान साहब के साथ ताल में ताल मिला रहे हैं।
चाँद और तारों के अलावा दूर दूर तक कोई रोशनी नजर नहीं आ रही है। "भगवान करें हफ्ते में एक दो बार शहर में भी रात में लाइट न रहे! कम से कम चारों ओर चकाचौंध तो नहीं होगी! चाँद और तारे तो साफ दिखाई देंगे!" 
गांव की हवा भी ज्यादा ठंडी लग रही है। लग रहा है जैसे शहर की सारी लाइटें ही मिलकर हवा को गर्म बना देती हैं। 

आज बहुत दिन बाद वो ही पुरानी वाली फीलिंग आई है। गाँव में रात में खूब ठंडी हवा चलती है। चाँदनी रात में हम ऐसे ही खुले आसमान के नीचे सोते थे। सब आपस में खूब बातें करते थे। मुझे बचपन से ही गाने और गजलें सुनना बहुत पसंद है। लेकिन उस समय यहाँ लाइट नही थी। तो टीवी तो चलती नहीं थी, हम सुबह से रात तक "विविध-भारती" सुनते रहते थे। 
"जयमाला" "संगीत-सरिता"  "हेलो फरमाइश" "चित्रलोक" और भी न जाने कितने ही प्रोग्राम आते थे।
इधर रेडियो बजता रहता था उधर हम अपना काम करते रहते थे। जब कभी रेडियो पर "दिल ढूँढता है..." गाना बजता तो मैं सोचने लगता था कि एक समय आएगा जब हम गाँव से दूर होंगे, हमारे पास फुर्सत नहीं होगी, तब हमें यह समय याद आएगा...और बहुत बार गांव की याद आई तब ये गाना सुना था लेकिन आज फिर वो ही फुर्सत के दिन जी रहा हूँ, छत पे गुज़ारी वो रातें महसूस कर रहा हूँ, आज फिर गांव को महसूस कर रहा हूँ । 
मैंने फोन में वही गाना लगा दिया है... और आसमान की ओर देखते हुए मैं उन्हीं पुरानी यादों को फिर से जी रहा हूँ..
इधर धीरे-धीरे बज रहा है,
"दिल ढूँढता है, फिर वही, फुर्सत के रात-दिन..."
शिवपाल राजपुरोहित✍️🎤 #गांव  #village 

#Stars&Me
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Shivpal Rajpurohit

छट गए तम के सारे बादल
जब से मिला गुरु का साया
आखर ज्योत जला ह्रदय में
अंधकार सब दूर भगाया
मन के कोरे कागज पर 
जो ज्ञान अमिट लिखवाया
कभी प्यार से, कभी डांट से
जीवन पाठ पढ़ाया
भुलाकर सारे भेदभाव को
सबसे प्रेम सिखाया
जो भी आया द्वार आपके
सबको गले लगाया
कठिन राहों पर आगे बढ़कर
सफलता के शिखर चढ़ना सिखाया
अपरम्पार है आपकी महिमा
कोई पार नही पाया
देकर ज्ञान का अथाह भंडार
मुझे अच्छा इंसान बनाया ।।
🙏🙏🙏🙏🙏 🙏🙏🙏
 शिवपाल राजपुरोहित✍️🎤 #Teacher  #Teacherday #teachers 

#InspireThroughWriting
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