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नई नवेली नार अकेले , पावस में ससुराल बसे। बारिश की

नई नवेली नार अकेले , पावस में ससुराल बसे।
बारिश की बूंदे उसको , सौतन के ही मानिंद डसे।

मेघा के ही साथ रात में, सेज पे दो नयना बरसे।
सजनअंग संग मिलन को आतुर, गोरी का अंग अंग तरसे।
डाढ़ लगे बारिश को विधिना, बिरह में घन जो गरज हंसे।
बारिश की बूंदे उसको, सौतन के ही मानिंद डसे।

बारिश से कुछ धुले ना धुले, आँसू से कजरा धुल जाए।
मेघा के छाने से तन में, पावस में पावक लग जाए।
मन की आग बुझा नहीं पाते, सावन के काले बादल।
ठोकर से क्या बजा कभी है, दुल्हन के झुमका पायल।
आग लगे उनके दफ्तर को, ताकि वो घर लौट सके।
बारिश की बूंदे उसको- सौतन के ही मानिंद डसे।
                ------- सतीश मापतपुरी

©Satish Mapatpuri पावस

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नई नवेली नार अकेले , पावस में ससुराल बसे।
बारिश की बूंदे उसको , सौतन के ही मानिंद डसे।

मेघा के ही साथ रात में, सेज पे दो नयना बरसे।
सजनअंग संग मिलन को आतुर, गोरी का अंग अंग तरसे।
डाढ़ लगे बारिश को विधिना, बिरह में घन जो गरज हंसे।
बारिश की बूंदे उसको, सौतन के ही मानिंद डसे।

बारिश से कुछ धुले ना धुले, आँसू से कजरा धुल जाए।
मेघा के छाने से तन में, पावस में पावक लग जाए।
मन की आग बुझा नहीं पाते, सावन के काले बादल।
ठोकर से क्या बजा कभी है, दुल्हन के झुमका पायल।
आग लगे उनके दफ्तर को, ताकि वो घर लौट सके।
बारिश की बूंदे उसको- सौतन के ही मानिंद डसे।
                ------- सतीश मापतपुरी

©Satish Mapatpuri पावस

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