मुतमईन नही है खुद ही से हम, क्यो होगये है बेहिस्स अभी से हम, राबतो में कोई मुसलसल रहता ही नही, रुस्वा है शायद सभी से हम, जितना पूछा जाए, देते है जवाब उतना ज़बान से, ज्यादा कहते नही कुछ किसी से हम, उसकी सोहबत में मत जाना, ज्यादा कुर्बत में मत जाना, उसे चूमकर हम लौट ले, बस यहीं जबीं से हम.....। मुतमईन- सन्तुष्ट, बेहिस्स- क्रूर, मुसलसल- लगातार, सोहबत- संगत कुर्बत-नज़दीकी, जबीं- माथा