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⭐अपरिचित⭐ मंजिल दोनो की एक रही,साधन दोनो का एक र

 ⭐अपरिचित⭐

मंजिल दोनो की एक रही,साधन दोनो का एक रहा।
अपरिचित प्रेम से एक दिवस,बस नयनों से संवाद हुआ।

अंदर  तो  थी  उथल पुथल,
बाहर मन था   शांत सरल।
उसकी झील सी आंँखों को,
मन देख हुआ अत्यंत विह्वल।
जीवन में पहली बार सखे,ऐसा एक अपवाद हुआ//1//

मन जान लिया मन की भाषा,
क्या   जानेंगे   इसरो   नासा ।
मन   में   चित्र  बसा   उसका,
बंद नेत्र किए एक आह भरा।।
मन ही मन उस परमपिता का, शत शत बार अभिवाद हुआ//2//

जल बिन मीन का तड़पन ज्यों,
हंसनी हंस का बिछड़न ज्यों,
ज्यों देह से प्राण निकलते हैं,
उस क्षण ये अनुभूति हुई।
उनके नयनों के चितवन से,जिस क्षण मन आजाद हुआ//3// #मौर्यवंशी_मनीष_मन #गीत_मन #प्रेम #अपरिचित
 ⭐अपरिचित⭐

मंजिल दोनो की एक रही,साधन दोनो का एक रहा।
अपरिचित प्रेम से एक दिवस,बस नयनों से संवाद हुआ।

अंदर  तो  थी  उथल पुथल,
बाहर मन था   शांत सरल।
उसकी झील सी आंँखों को,
मन देख हुआ अत्यंत विह्वल।
जीवन में पहली बार सखे,ऐसा एक अपवाद हुआ//1//

मन जान लिया मन की भाषा,
क्या   जानेंगे   इसरो   नासा ।
मन   में   चित्र  बसा   उसका,
बंद नेत्र किए एक आह भरा।।
मन ही मन उस परमपिता का, शत शत बार अभिवाद हुआ//2//

जल बिन मीन का तड़पन ज्यों,
हंसनी हंस का बिछड़न ज्यों,
ज्यों देह से प्राण निकलते हैं,
उस क्षण ये अनुभूति हुई।
उनके नयनों के चितवन से,जिस क्षण मन आजाद हुआ//3// #मौर्यवंशी_मनीष_मन #गीत_मन #प्रेम #अपरिचित