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kavi manish mann

दर्श मिले यदि आपका मोहन चाह नहीं कुछ और मिले फिर।
बालक रूप में आँगन आओ तो द्वापर का वह दौर मिले फिर। #मौर्यवंशी_मनीष_मन #कृष्ण

kavi manish mann

किंतु लेकिन तो कहीं पर काश बनकर रह गई।
जिंदगी दीनों की बस  उपहास बनकर रह गई।
मीडिया को  चाहिए था  सत्य के  वो साथ हो,
किंतु वो  दरबार की बस  दास बनकर रह गई। #मौर्यवंशी_मनीष_मन #जीवन  #जिंदगी #दीन

kavi manish mann

#मुक्तक_मन #मौर्यवंशी_मनीष_मन #यात्राएं #धाम पूर्ण हो पाए न जो वो #कल्पनाएंँ व्यर्थ हैं। यदि हृदय पाषाण है तो #याचनाएंँ व्यर्थ हैं। मांँ पिता को भूलकर जो घूमते हैं धाम चारो, बोल दे कोई उन्हें ये यात्राएंँ व्यर्थ हैं।

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यदि हृदय पाषाण है तो याचनाएंँ व्यर्थ हैं।
पूर्ण हो पाए न जो  वो कल्पनाएंँ  व्यर्थ हैं।
मांँ पिता को भूलकर जो घूमते हैं धाम चारो,
बोल  दे  कोई  उन्हें  ये  यात्राएंँ  व्यर्थ  हैं।  #मुक्तक_मन #मौर्यवंशी_मनीष_मन #यात्राएं #धाम 

पूर्ण हो पाए न जो  वो #कल्पनाएंँ  व्यर्थ हैं।
यदि हृदय पाषाण है तो #याचनाएंँ व्यर्थ हैं।
मांँ पिता को भूलकर जो घूमते हैं धाम चारो,
बोल दे  कोई  उन्हें  ये  यात्राएंँ  व्यर्थ  हैं।

kavi manish mann


पूर्ण हो पाए न जो  वो कल्पनाएंँ  व्यर्थ हैं।
यदि हृदय पाषाण है तो याचनाएंँ व्यर्थ हैं।
मांँ पिता को भूलकर जो घूमते हैं धाम चारो,
बोल दे  कोई  उन्हें  ये  यात्राएंँ  व्यर्थ  हैं।
     #मुक्तक_मन #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann

किताब के बारे में #मौर्यवंशी_मनीष_मन #बुक

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किताब के बारे में

मेरे प्रिय पाठकों,
                     जीवन एक यात्रा है इस यात्रा में जहांँ खुशी,शांति,प्रेम और एकांत की अनुभूति होती हैं वहीं हमें धूप,सर्दी,बारिश,तूफान पर्वत जैसी छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करते हुए आगे बढ़ना होता है। और इस यात्रा में हम जब खुश होते हैं तो कोई गीत गुनगुनाते हैं,प्रेम का स्पर्श होता है तो प्रेम गीत गाते हैं,बिछड़ते हैं विरह गीत गाकर या सुनकर अपने मन को      हल्का करने की कोशिश करते हैं। जब हमारे पास कोई नहीं होता तो कविताएंँ साथ होती हैं,हमें सांत्वना देती हैं।
    अतः हम कह सकते हैं कविताऐं हमारे दुःख–सुख की साथी हैं।
आप इस किताब में कविताओं के अनेक भावों को महसूस करेंगे। एक आम जनमानस के जीवन की कठिनाईयांँ, कोरोना में लोगों का जीवन,बेरोजगार युवाओं की पीड़ा,प्रेम की चंचलता,विरह वेदना,ईश्वर के प्रति आस्था,राष्ट्र के प्रति समर्पण महसूस कर पाएंँगे।
                                   कवि मनीष ‘मन’
 किताब के बारे में

#मौर्यवंशी_मनीष_मन #बुक

kavi manish mann

करो मत फिक्र तुमको कौन कितना क्या समझते हैं।।
यहांँ बस लोग जितना हैं तुम्हें उतना समझते हैं।

बहुत अच्छे बनो मत तुम फरेबी इस जमाने में,
यहांँ सच्चे को साहब राह का कांँटा समझते हैं।

बगावत भूल बैठे हैं लगे सब चापलूसी में,
यहांँ पर जी हुजूरी को सभी अच्छा समझते हैं।

हिमालय से निकलकर बह रही जो आज तक यूंँ ही,
विरह में रो रहा पर्वत जिसे नदिया समझते हैं। #मौर्यवंशी_मनीष_मन #ग़ज़ल_मन

kavi manish mann

कवि मनीष ‘मन’
                    कौशाम्बी,उत्तर प्रदेश से हैं।
 ये स्नातक करने के पश्चात हिंदी साहित्य से एम.ए. की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इन्हें बचपन से ही कविताएंँ पढ़ने
में अत्यधिक रुचि थी और इसी रुचि ने इन्हें
कविताएंँ लिखने की प्रेरणा दी।

कवि मनीष ‘मन’ जी कहते हैं–
“जाति,धर्म,संप्रदाय के झगड़े,बढ़ती अश्लीलता,
युवाओं में उच्च,पवित्र विचारों का अभाव,
संकृति का पतन, ये सारी चीजें हजारे राष्ट्र
 को कमजोर करने के लिए पर्याप्त हैं। हम
 प्रत्येक नागरिकों को चाहिए कि इस विषयों
 पर अपने अपने तरीके से सुधार करने का  प्रयत्न करें। मेरी रुचि कविताओं
 में में है।अतः मैं इस माध्यम से इन बुराइयों
 को समाप्त करने का प्रयत्न कर रहा हूंँ।” #मौर्यवंशी_मनीष_मन

kavi manish mann



उलझ कर उलझनों में तुम संवरना भूल जाओगे।
मुहब्बत की  गली में‌  फिर ठहरना  भूल जाओगे।
जिसे तुम मन के मंदिर में बसा कर पूजते हो ‘मन’
वही जब  दिल दुखायेगा  तो हंँसना  भूल जाओगे। #मौर्यवंशी_मनीष_मन #मुक्तक_मन

kavi manish mann


बहारों ने मेरा चमन लूट कर,
   खिजाँ को ये इल्जाम क्यूंँ दे दिया।
किसी ने चलो दुश्मनी की मगर,
        इसी दोस्ती नाम क्यूंँ दे दिया।

बहारों ने मेरा चमन लूट कर.......!

तूने समझा नहीं है मेरे हमनशी,
    सजा ये मिली है मुझे किसलिए।
के साकी ने लब से मेरे छीन कर,
      किसी और को जाम क्यों दे दिया।

बहारों ने मेरा चमन लूट कर.......!

मुझे क्या पता था कभी इश्क में,
      रकीबों को कासिब बनाते नहीं।
खता हो गई मुझसे कासिब मेरे,
      तेरे हाथ  पैगाम  क्यूंँ दे  दिया।

बहारों ने मेरा चमन लूट कर.......!

 #मौर्यवंशी_मनीष_मन #मनीष_मन #गीत_मन #

kavi manish mann

जुल्म का हर घर ढहाना चाहता हूंँ।
दर्द  क्या  है  ये  बताना  चाहता हूंँ।

लोग बस कैंडल जलाना चाहते पर,
भेड़ियों को  मैं जलाना  चाहता हूंँ।

जांघ फिर दुर्योधनों की तोड़ माधव,
खून की नदियांँ  बहाना  चाहता हूंँ।

रक्त से तुम  भेड़ियों के  केश धोना,
रक्त  से  मैं  भी  नहाना  चाहता हूंँ।

इंद्र है  वो  देवता  पर  छल  करे है,
हर अहिल्या  से बताना  चाहता हूंँ। #ग़ज़ल #मौर्यवंशी_मनीष_मन
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