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संस्कार की दुहाई" स्वयं का अस्तित्व बचाने के लिए

संस्कार की दुहाई"

स्वयं का अस्तित्व बचाने 
के लिए ही तो,"संस्कारों की दुहाई" दे रहे हैं।
 
वरना तो भूल के संस्कार ,लोग 
आज कल भेड़ बकरियों की तरह की रहे हैं ।

लोप कर चुके हैं सोचने की बुद्धि 
का, पूर्वजों के नाम को अधिकार दे रहे हैं ।

चरित्र का मूल बोध खो चुके हैं ,भर 
भर के जाम मध्य रात्रि तक बीच सड़को पे पी रहे।

©Anuj Ray
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