स्वप्न जले भींगी आँखों के, बिना दीप ही जली दिवाली, कहीं समृद्धि कहीं शून्यता, इस दुनिया की हर बात निराली। (दीपावली, मेरी पुस्तक: जाग रे मन ) पूरी कविता caption में अट्टालिकाएं दीपों से सज गयी, रह गयी कच्ची मुंडेर खाली, मिली न फुरसत भव्य भवनों से, तंग गलियों से गुजर ना पायी चिर प्रतीक्षित महंगी दिवाली। आडंबर के आंगन में उतरी, रात अंधेरी दीपों वाली,