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स्वप्न जले भींगी आँखों के, बिना दीप ही जली दिवाली,

स्वप्न जले भींगी आँखों के,
बिना दीप ही जली दिवाली,
कहीं समृद्धि कहीं शून्यता,
इस दुनिया की हर बात निराली।

(दीपावली, मेरी पुस्तक: जाग रे मन )
पूरी कविता caption में अट्टालिकाएं  दीपों से सज गयी,
रह गयी कच्ची मुंडेर खाली,
मिली न फुरसत भव्य भवनों से,
तंग गलियों से गुजर ना पायी
चिर प्रतीक्षित महंगी दिवाली।

आडंबर के आंगन में उतरी,
रात अंधेरी दीपों वाली,
स्वप्न जले भींगी आँखों के,
बिना दीप ही जली दिवाली,
कहीं समृद्धि कहीं शून्यता,
इस दुनिया की हर बात निराली।

(दीपावली, मेरी पुस्तक: जाग रे मन )
पूरी कविता caption में अट्टालिकाएं  दीपों से सज गयी,
रह गयी कच्ची मुंडेर खाली,
मिली न फुरसत भव्य भवनों से,
तंग गलियों से गुजर ना पायी
चिर प्रतीक्षित महंगी दिवाली।

आडंबर के आंगन में उतरी,
रात अंधेरी दीपों वाली,