उत्तरी पूर्वी दिल्ली को श्मशान बनाने वालों। गोद में जिसके खेलें थे घर उन्हीं का जलाने वालों। क्या लगता है हुड़दंग मचाने से सीएए हट जाएगा। शूरवीर रतनलाल को मौत की नींद सुलाने वालों। तीन महीने से तुमने रस्ता रोक कर रख्खा है। धरने के नाम पर तुमनें मजाक बना कर रख्खा है। जो नौकरी पेशे वालें है और जो पढ़ने वालें बच्चे है। उन सबको तुम लोगों ने बंधक बना कर रख्खा है। क्या समझते हो तुम की हम डर कर चुप रह जाते हैं। अरे तुमको अपना मानते हैं हम इसीलिए समझाते हैं। हमारी इस खामोशी को कमजोरी नहीं समझना तुम। अरे हम हिन्दू है आदत है हमारी हम सर्पों को दूध पिलाते हैं। शाहीन बाग के मंच से प्रतिदिन आग उगलते रहते हो। हम पंद्रह करोड़ सौ करोड़ पर भारी ऐसी बातें कहतें हो। पूरी दिल्ली को क्या अपनी खाला का घर समझा है। जहाँ भी देखों धरने पर तुम रोड़ जाम कर बैठें हो। देखों ये सब ठीक नहीं ये देश तुम्हारा भी तो है। सीएए में क्या गलत है सीएए एनआरसी ठीक तो है। तुम तो भारत के वासी हो सीएए से तुम्हें कोई नुकसान नहीं। कोई आतंकी हमारे घर में न आये ये फैसला ठीक तो है। हम ईद तुम्हारे साथ मनाएं तुम होली के दिवाली साथ रहो। यदि तुम्हें कुछ कहना है तो सही ढंग से अपनी बात कहो। सरकार सुनेगी हम भी सुनेंगे बात तुम्हारी ध्यान से। किसी से कुछ कहने के लायक तुम कम से कम इंसान बनों। अब और नहीं समझा सकता मैं समझाने की एक सीमा है। मैं शीष नहीं झुका सकता हूँ मेरी भी एक गरिमा है। अगर समझ गए तो अच्छा है वरना अंजाम खुद भोगोगे। ये तो तुम्हारी मर्जी है तुम करों तुम्हें जो करना है। अजय कुमार व्दिवेदी #अजयकुमारव्दिवेदी दिल्ली हिंसा