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ajaykumardwivedi6414
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Ajay Kumar Dwivedi

वो खुद के बारे में क्या लिख्खें, जो औरों में खोया हो। देख समाज की कुरीतियों को, जो पूरी रात रोया हो।

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Ajay Kumar Dwivedi

शीर्षक - अब तुमको ही लड़ना होगा। 

मृत सभा में बार बार यूं न्याय न्याय चिल्लाने से।
किसी को न्याय मिला है क्या यूं अश्रु व्यर्थ बहाने से।
न्याय तुम्हें यदि लेना हो तो नेत्रों में अंगार भरो।
बनकर लक्ष्मीबाई अपने हाथों में तलवार धरो।
हर मोड़ पर तुम्हें यहां एक दुर्योधन मिल जायेगा।
दुशासन का हाथ तुम्हारे आंचल तक बढ़ जायेगा।
सभा है ये अन्धों की यहाँ पर भीष्म मौन रह जायेगा।
कृपाचार्य और गुरू द्रोण कोई कुछ नहीं कह पायेगा।
ना अब लाज बचाने वाला केशव यहां पर आयेगा।
ना ही अब कुरूक्षेत्र में गांण्डिव कोई उठायेगा।
अपना अस्तित्व बचाने को तुमको ही कुछ करना होगा।
इन दुष्ट दुराचारी लोगों से तुमको ही लड़ना होगा।
यह मृत सभा है अंधों कि यहां जीवित सब पाषाण पड़े। 
द्रौपदी चीर हरण को सब देखेंगे बस चुपचाप खड़े। 
हे नारी तुम दुर्गा बन अब दुष्टों का संघार करों।
एक हाथ में खप्पर लेलो एक हाथ में खड़ग धरो।
तुम ही शस्त्र उठाओ अब हुंकार तुम्हें भरना होगा। 
इस कलयुगी दुर्योधन का अब वध तुमको करना होगा। 

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''

©Ajay Kumar Dwivedi #अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - अब तुमको ही लड़ना होगा। 

#Stoprape

#अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - अब तुमको ही लड़ना होगा। #Stoprape #कविता

9 Love

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Ajay Kumar Dwivedi

शीर्षक - उस सभा में है जरूरत सुदर्शन चक्र उठाने की। 

सत्ता को दोषी कहने और पुलिस को गाली देने से।
नहीं मिलेगा इंसाफ तुम्हें यूं अबला बनकर रोने से।
संविधान लिखने वाले ने कसर नहीं कुछ छोड़ी थी।
लगता है अपराधियों के साथ में उसकी अच्छी जोड़ी थी।
कानून बनाया इतना गन्दा न्याय तुम्हें मिले कैसे।
जब अपराधी घुमें बाहर तो फूल कहीं खिलें कैसे।
क्यूँ हाथों में पोस्टर लेकर सड़कों पर निकलते हो।
उन्हीं हाथों से खुद तुम न्याय क्यूँ नहीं करते हो। 
बलात्कार जैसी घटनाओं पर भी राजनीति करने वालों। 
जात पात के नाम पर अक्सर एक दूजे से लड़ने वालों। 
जात धर्म के नाम पर शहर जला देते हो तुम। 
फिर क्यूँ नहीं ऐसे कुकर्मी को जड़ से मिटा देते हो तुम। 
जिस राज्य का राजा अन्धा हो वहां दुर्योधन शीष उठाता है। 
भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र हरण करवाता है। 
भीष्म पितामह जैसे ज्ञानी जहाँ मौन रह जाते हो। 
कृपाचार्य और गुरू द्रोण एक शब्द नहीं कह पाते हो।
उस सभा में है जरूरत सुदर्शन चक्र उठाने की।
ना की नपुंसकों की भाँति सबके मौन रह जानें की।

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''

©Ajay Kumar Dwivedi #अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - सुदर्शन चक्र उठाने की। 

#Stoprape

#अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - सुदर्शन चक्र उठाने की। #Stoprape #कविता

10 Love

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Ajay Kumar Dwivedi

दीप  जला  हो  जिस  घर  में। 
बस रौशन करता उस घर को।
तू  बिटिया  है कुल  का गौरव।
रौशन   करती   दो  कुल  को। 
तुझे देख कर चलती सांसें। 
तू  ही हृदय की धड़कन है। 
तेरे  बिना  जीऊं  मैं  कैसे। 
तू  ही  तो  मेरा  जीवन  है। 
उलझन सब मेरे जीवन की। 
मुस्कान  तेरी  सुलझाती है। 
जब  भी  तेरी बातें  सुनता। 
मुझे दादी याद आ जाती है। 
हाथ  में   है  लालटेन  मगर।
जीवन को रौशन तूने किया। 
बैठ    के   मेरी   गोदी    में। 
तूने  जीवन  ये  धन्य किया। 

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''

©Ajay Kumar Dwivedi #अजयकुमारव्दिवेदी बिटिया
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Ajay Kumar Dwivedi

दीप  जला  हो  जिस  घर  में। 
बस रौशन करता उस घर को।
तू  बिटिया  है कुल  का गौरव।
रौशन   करती   दो  कुल  को। 
तुझे देख कर चलती सांसें। 
तू  ही हृदय की धड़कन है। 
तेरे  बिना  जीऊं  मैं  कैसे। 
तू  ही  तो  मेरा  जीवन  है। 
उलझन सब मेरे जीवन की। 
मुस्कान  तेरी  सुलझाती है। 
जब  भी  तेरी बातें  सुनता। 
मुझे दादी याद आ जाती है। 
हाथ  में   है  लालटेन  मगर।
जीवन को रौशन तूने किया। 
बैठ    के   मेरी   गोदी    में। 
तूने  जीवन  ये  धन्य किया। 

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''

©Ajay Kumar Dwivedi #अजयकुमारव्दिवेदी बिटिया
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Ajay Kumar Dwivedi

काश    मेरी    भी    बेटी   होती।
दुनियां     में     अनोखी    होती। 
पल   में   रोती   पल  में  हसती।
पास    मेरे    वो    बैठी    होती।
नये  -  नये   करतब  दिखलाती। 
दादी   बनकर   मुझे  समझाती। 
प्रतिदिन मुझको सुबह-शाम वो। 
अपनी     बातों     से    हँसाती। 
आकर  पास  मेरे  सो  जाती। 
नये  -  नये   खिस्से   सुनाती।
जो  मेरी   होती  बिटिया  तो। 
पूरे   घर   का   मन  लुभाती। 
गुड़िया   रानी  बनकर  रहती। 
मेरा   आंगन   रौशन   करतीं। 
गुड्डे  गुड़ियों का व्याह रचाती। 
बात  हृदय की मुझसे कहती। 
काश  मेरी  भी  बेटी होती।
काश  मेरी  भी  बेटी होती।
अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''

©Ajay Kumar Dwivedi #HappyDaughtersDay2020
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Ajay Kumar Dwivedi

मेरी  खामोशियाँ  ही  मुझसे  ये सवाल करतीं हैं।
क्यूँ खामोश हूँ मैं इतना इसका हिसाब करतीं हैं।
मेरी उलझनों को समझने की कोशिश नहीं करतीं।
अक्सर  ही   बातें  ये  मुझसे  बेमिसाल  करतीं  हैं।
बैठा    रहूँ    खामोश    कहीं    तन्हाइयों   मे   जो   मैं।
तो ख्यालों में मुझे चंद पल के लिए खुशहाल करतीं हैं।
जब तक तन्हाइयों मे हूँ मैं खुश नजर आता हूँ।
जब   ख्वाब  टूटता  है  तो  पता  चलता है कि। 
मेरी  खामोशियाँ  भी  मुझसे  मजाक करतीं हैं।
बन  गईं  हैं  मेरी  मित्र  ये  खामोशियाँ  मेरी। 
मेरी खामोशियाँ मुझसे बहुत प्यार करतीं हैं।
इन  खामोशियों ने ही तो हृदय से अन्धेरे का डर निकाला है। 
क्योंकि अन्धेरो मे भी मेरी खामोशियाँ मुझसे बात करतीं हैं।
 जिन्दगी   की   बहुत   सारी   उलझनों   मे  उलझा  हुआ  हूँ   मैं। 
मेरी खामोशियाँ ही मुझे उन उलझनों से बाहर निकाल करतीं हैं।
मेरी तन्हाइयों में सबसे अच्छी  साथी हैं ये खामोशियाँ मेरी।
पर  कभी-कभी  बातें  ये  खामोशियाँ  भी बेकार करतीं हैं।
जिस  कार्य  को  पूर्ण  करना  असम्भव  हो जिन्दगी में। 
उसके     भी     पूर्ण     होने     का    स्वप्न    दिखाकर। 
मेरी      खामोशियाँ      मुझे     परेशान     करतीं     हैं। 
क्यूँ खामोश हूँ मैं इतना इसका हिसाब करतीं हैं। 
मेरी  खामोशियाँ  ही  मुझसे  ये सवाल करतीं हैं। 

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय'' #अजयकुमारव्दिवेदी मेरी खामोशियाँ

10 Love

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Ajay Kumar Dwivedi

रूठी हुईं है जीन्दगी, मनाऊँ भला कैसे।
जो टूट गये सपने, फिर सजाऊं भला कैसे।
यूं तो जख्म गहरा है, मेरे हृदय के भीतर।
वो कहते हैं दिखाओ, मैं दिखाऊँ भला कैसे।

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय'' #अजयकुमारव्दिवेदी
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Ajay Kumar Dwivedi

नजदीकियां दिल की किताबों में सिमट कर रह गई।
खुबसूरती  पैसों  की  बाहों  में  लिपट  कर  रह गई।
प्यार    रहा    अब   कहा   इंसान   को   इंसान   से।
इंसानियत  इंसान  की  खुदगर्जी  में  अब  ढ़ल  गई।

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय'' #अजयकुमारव्दिवेदी नजदीकियां
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Ajay Kumar Dwivedi

शीर्षक - ब्रम्हाण्ड सुन्दरी मृत्यु।

मृत्यु तो एक दिन आनी है, मृत्यु से इतनी दूरी क्यूँ।
जीवन के पिछे भागे हम, है जीवन ये मजबूरी क्यूँ।
मृत्यु हंसकर गले लगातीं, जीवन हाथ छुड़ाता है।
फिर भी बना हुआ है जीवन, सबकें लिए जरूरी क्यूँ।
जीवन के पिछे भागते हम, मृत्यु के आगे आते हैं।
फिर भी न जानें क्यूँ मृत्यु से, इतना हम घबराते हैं।
मृत्यु ही सत्य है जीवन का, है जीवन एक असत्य बड़ा।
यह जानते हैं हम सब फिर भी, मन को अपने बहलाते हैं।
यह जीवन एक धारावाहिक है, ईश्वर इसका निर्माता है।
हम सब वैसे ही नाचते हैं, जैसा वो हमें नचाता है। 
हम सब तो एक अभिनेता है, है हम सबका निर्देशक वो।
हैं जितने भी किरदार यहां, वह सबका भाग्यविधाता है।
किरदार दिया जैसा हमको, वैसा किरदार निभाना है।
उस निर्माता निर्देशक के, चरणों शीश नवाना है।
किरदार छोड़कर जायेंगे, जब निर्माता वो चाहेगा।
ब्रम्हाण्ड सुन्दरी मृत्यु को, हमें एक दिन गले लगाना है।

अजय कुमार द्विवेदी #अजयकुमारव्दिवेदी
शीर्षक - ब्रम्हाण्ड सुन्दरी मृत्यु।

#अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - ब्रम्हाण्ड सुन्दरी मृत्यु। #कविता

10 Love

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Ajay Kumar Dwivedi

आखों  में  मेरे  आंसू थे मगर मैं रोया नहीं।
मुख  से  तेरे  चुंबन के दाग को धोया नहीं।
लाखों  सपनें  सजा  लिए  तूने  अपनी  आखों में। 
पर मेरी आखों ने कभी सपना कोई सजोया नहीं। 
तू छोड़कर जबसे गई मैं क्या बताऊँ हाल को। 
मैं  किसी  के सपनों में आज तक खोया नहीं। 
बरसों  गुजर  गये  मेरे  तुझ संग  बिछड़े  हुए।
एक अरसा  हो  गया  मैं  रात  में  सोया नहीं। 
ऐसा  कोई  दिन  नहीं  मुझे याद तू न आई हो। 
पर तूने मुझको खो दिया मैंने तुझे खोया नहीं।

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय'' #अजयकुमारव्दिवेदी
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