सालों से वो मुझे ख़ामोश करना चाहता था मेरे विचारों की हत्या कर जिसमे अकिंचित वो सफल होता रहा मुझे हर उस उम्मीद से दूर करके आत्ममुग्ध होता जिसका कि मैं हकदार था मैं बहुत छोटा था उसके दम्भ और शक्ति के आगे इसलिये,एक दिन मैंने कहना छोड़ दिया . यह सोचकर कि उसको भी तो खड़ा होना है अदालत में अपनी एक दिन संजय नौटियाल ©संजय नौटियाल अपनी अदालत संजय नौटियाल