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संजय नौटियाल

शिक्षा के क्षेत्र में 15 वर्षों से कार्यरत गणित तथा शिक्षा शास्त्र विषय मे निष्णात

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संजय नौटियाल

सब्जी की ठेली से आवाज देता बच्चा
उनकी मटमैली आँखों की दीप्ति
उस चटकती धूप में
चमड़ी गला देने वाली सूर्य की प्रखर किरणें
और
सख़्त हो चुकी जबान भाव तोल करते हुए
अनायास ही कर लेता है रोजी का गणित शाम की रोटी की खातिर
स्कूल के बाहर सब्जी बेचता वह बच्चा

©संजय नौटियाल #childlabour
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संजय नौटियाल

बिखर गया हूँ पंक्ति बनकर मैं 
सबने परखा मुझे 
मनचाहा अर्थ लगाया मेरा 
 चाहता हूं 
मुझे सिर्फ शब्द रहने दिया जाय 
जिसका केवल एक अर्थ हो 
बेशक पंक्ति की विशालता खो दूँ ।

©संजय नौटियाल #covidindia
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संजय नौटियाल

वृक्ष तुम कितने अकेले हो मेरी तरह
इस सुनसान धूप में तपती दोपहरी में
लू के गर्म थपेड़े निरीह निपट अकेले
तुम्हे देख कर तरस आता है ।
कितनी समानता है तुम में और मुझमें

©संजय नौटियाल #Blacktree
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संजय नौटियाल

फागुन की एक हँसमुख सुबह
नदी तट से नहा कर लौटती 
ये सुवासित भीगी हवाएं
 सदापावन , माँ सरीखी
सोते देखकर मुझे जगाती ये गीली शीतोष्ण हवाएँ
सिरहाने रख एक अंजलि फूल गुरियाल के
नर्म उँगलियों से गाल को छूकर निकलती 
बिखरे बालों वाली शीतोष्ण हवाएँ

©संजय नौटियाल savere svere

#hawayein

savere svere #hawayein

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संजय नौटियाल

खूब दौड़ो मेरे पहाड़ की बेटी 
इतना कि मीलों पीछे छोड़ दो उन असंख्य सवालों को 
जो सायास तुमसे पूछे गए होंगे।
अडिग रहना अपनी इस  ज़िद्द पर 
जब तक कि तुम्हे स्वयं उत्तर न मिलें उनके 
क्योंकि तुम तो हो मेरे पहाड़ की बेटी 
तुम्हे तो आशीर्वाद है इस हिमालय का 
इन नदियों का ,इन  जंगलों का 
और उस माँ का
जिसकी आखों से गिर जाया करती होंगी दो बूंदे
रोटी का टुकड़ा मुंह में डालने से पहले तुम्हे याद करते हुए
 तुम्हे तो आशीर्वाद है गांवों मे रहने वाली उन असंख्य बेटियों का 
जो तुम पर अपना अक्स देखती हैं ।
तुम थकना मत अडिग रहना हिमालय की तरह ।
क्योंकि तुम तो हो मेरे पहाड़ की बेटी

©संजय नौटियाल पहाड़ की बेटी को सलाम

पहाड़ की बेटी को सलाम

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संजय नौटियाल

एक अलसायी हुई हवादार सुबह
उबासियाँ, अंगड़ाइयाँ
और एक खूबसूरत बात
आज दफ्तर नही जाना है 
बिस्तर नियामत
रजाई की गर्म खुशामत
और लेटे - लेटे एक और  खूबसूरत बात
आज हजामत नही बनाना है 
निडर ख़यालों की हवाखोरी
शरीफ मौसम से शरारत करती ये आवारा हवाएं
सैकड़ों रंगों से सराबोर एक साथ कहराते हुए
 इन फूलों का लड़कपन

©संजय नौटियाल एक अलसायी हुई हवादार सुबह

एक अलसायी हुई हवादार सुबह

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संजय नौटियाल

वृक्ष तुम कितने अकेले हो मेरी तरह
इस सुनसान धूप में तपती दोपहरी में
लू के गर्म थपेड़े निरीह निपट अकेले
तुम्हे देख कर तरस आता है 
कितनी समानता है तुम में और मुझ में


-संजय नौटियाल

©संजय नौटियाल अंदर का खालीपन

#Blacktree

अंदर का खालीपन #Blacktree

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संजय नौटियाल

खूब दौड़ो मेरे पहाड़ की बेटी 
इतना कि मीलों पीछे छोड़ दो उन सवालों को 
जो सायास तुमसे पूछे गए होंगे
अडिग रहना अपनी इस  ज़िद्द पर 
जब तक कि तुम्हे स्वयं उत्तर न मिलें उनके 
क्योंकि तुम  तो हो मेरे पहाड़ की बेटी 
तुम्हे तो आशीर्वाद है इस हिमालय का 
इन नदियों का ,इन  जंगलों का 
और उस माँ का
जिसकी आखों से आँसू की दो बूंदे गिर जाया करती होंगी
 रोटी का टुकड़ा मुहं में डालने से पहले तुम्हे याद करते हुए
 तुम्हे तो आशीर्वाद है, गांवों मे रहने वाली उन असंख्य बेटियों का 
जो तुम पर अपना अक्स देखती हैं 
तुम थकना मत अडिग रहना हिमालय की तरह 
क्योंकि तुम तो हो  मेरे पहाड़ की बेटी.


-संजय नौटियाल #मेरे पहाड़ की बेटी

#मेरे पहाड़ की बेटी

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संजय नौटियाल

पिछले कुछ दिनों से जाग रहा हूँ देर रात तक
सोचकर की  लिखूंगा जी भरकर 
अतीत को याद करते हुए 
पलटता हूँ  अतीत के पन्ने रात भर
निचोडता  हूँ  अपना मन
सुबह होते ही समेटता  हूँ बिखरे पन्ने निराश मन से 
और खड़ा हो जाता हूँ अपनी  ही अदालत में निशब्द और शांत   
सोचते हुए कि आज भी न लिख पाया कुछ 
नही समेट पाया अपने अतीत को 

और ..

आज फिर जागूँगा रातभर 
यह सोचकर  कि ..
एक अंतिम चिठ्ठी शेष है तुम्हारे नाम.........


-संजय नौटियाल #अतीत के पन्ने संजय

#अतीत के पन्ने संजय #कविता

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संजय नौटियाल

सालों से वो मुझे ख़ामोश करना चाहता था
मेरे विचारों की हत्या कर
जिसमे अकिंचित वो सफल होता रहा
मुझे हर उस उम्मीद से दूर करके आत्ममुग्ध होता 
जिसका कि मैं हकदार था
मैं बहुत छोटा था उसके दम्भ और शक्ति के आगे 
इसलिये,एक दिन मैंने कहना छोड़ दिया .
यह सोचकर कि उसको भी तो खड़ा होना है 
अदालत में अपनी एक दिन



संजय नौटियाल

©संजय नौटियाल अपनी अदालत

संजय नौटियाल

अपनी अदालत संजय नौटियाल

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