बड़ी शरारत सी भरी है तेरी-मेरी ये दास्तान बड़ी अनोखी सी हरी है मेरी ये खेतों के बागान तू बता दे हे चुहिया रानी क्युं ले जाती हो मेरी फसल को कर जाती हो अपनी मनमानी घाटे में पड़ जाती है पूंजी मेरी क्यूं कर जाती हो मुझे हैरानी बड़ी छल कर जाती हो तूम क्यूं करती हो मुझसे बैमानी तेरी उछल- कुद व बातें प्यारी लगती है मुझे बहुत ही न्यारी फुदक-फुदक यूं शोर मचाओ जो धून संगीत सी लगती है मटक-मटक यूं जोर लगाओ जो भार तूझपर ही सजती है ना जानें तु कितने अन को रखती है क्यूं बिल में छूपाए ना जाने तू कितने बरस को रखती है क्यूं तू हमें तरसाए बड़ी नाराज़ हो जाता हूं मेहनत तक का फल ना मिलता तब फिर आंसू बहाता हूं बड़ी दुर्लभ सी है जीवन मेरी फिर भी अनाज खिलाता हूं ये जो है कर्तव्य हमारा मिट्टी से हूं जूडा अवारा खेती मेरी पेशा है दुनिया का मै जान हूं पर भरता हूं मैं पेट सबका एक भूखा-नंगा किसान हूं मुझे गर्व है मेरी करनी से कि भारत मां की शान हूं सभी विरोधी हम किसान के अकेले हम क्या कर पाएंगे जब नहीं चुकेगा लोन हमारा तो आत्महत्या कर मर जाएंगे राहुल ने बताई किसानों की पिडा़ कि ना करो इनकी जीवन से क्रीड़ा गरीबों को क्यूं तडपाते हो तुम राजनितिज्ञों क्यूं फंसाते हो तुम जय जवान,जय किसान कवि:-राहुल कुमार ©Rahul Kumar farmers problem in this poem #emptystreets