एक दिन हम घूमने निकले,दिल मे कुछ अरमान थे एक तरफ झाड़िया थी तो दूसरी तरफ शमसान था कि ठोकर लगी राह पड़ी एक हड्डी से उसके भी ये बयान थे चलने वाले चल संभल के,हम भी कभी इंसान थे "पुरोहित"की कलम से कविता एक दिग्दर्शन हैं जिसमें कवि के भाव उजागर होते हैं