खुद की हथेलियां ही आग मे क्यो डाले हम, किसी गिरते हुए शख्स को क्यों संभाले हम, किसी के दर्द में अब खुद को रखने की कोई ख्वाहिश नहीं रही, इस जिंदगी में कोई भी रिश्ता , क्यो पाले हम, एक शाम में राहत की बात अब क्या करे, किसी का भी गुस्सा किसी पर क्यों निकाले हम, और दफन है एक लाश खुद की खुद के अंदर में, एक कतरा जान का भी इसमें अब क्यों डाले हम, ©GULSHAN KUMAR JHA #jashn_e_zindagi #Chhuan