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ठहर ठहर ऐ दर्द प्रिय ! ठहर ठहर ऐ दर्द प्रिय ! मैं

ठहर ठहर ऐ दर्द प्रिय !

ठहर ठहर ऐ दर्द प्रिय !
मैं तेरा हमदर्द प्रिय
कुछ दिन और रहोगे तो
क्या है मुझको हर्ज प्रिय !

तुम हो दुर्दिन के साथी
तब मेरा यह फर्ज़ प्रिय
मैं तेरा बन जाऊँ दवाई
गर तुमको कोई मर्ज़ प्रिय !

अंत तक तेरा साथ मैं दूँगा
मैं नहीं खुदगर्ज प्रिय
लौटना जब तेरी मर्जी 
जब हो तुमको गर्ज प्रिय !

- हरि शंकर कुमार

©Hari Shanker Kumar
  #ठहर ठहर ऐ दर्द प्रिय

#ठहर ठहर ऐ दर्द प्रिय #कविता

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