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मैं ठहरा हूं जमीन पे मेरी आंख में ठहरा है चांद ।

मैं ठहरा हूं जमीन पे 
मेरी आंख में ठहरा है चांद ।
छुप छुप के झांकने पे मजबूर 
तारों की चाहत पे पहरा है चांद ।
दिन भर सोए है थकन से चूर 
रात भर यहां वहां भटका है चांद ।
कभी पापा  की खनकती अठन्नी सा
कभी मां के गजरे सा महका है चांद ।
भीगी पलकों के साए में
ठंडी आग सा दहका है चांद ।
कहीं हुस्न के विसाल सा
कहीं हिज्र का रंग गहरा है चांद ।
रात रात भर जाग कर मांगी थी
उन अधूरी मन्नतों का चेहरा है चांद । 🌙
~सुगंध #sugandh_ankahi #sugandhmishra #moon #night  #moonpoetry
मैं ठहरा हूं जमीन पे 
मेरी आंख में ठहरा है चांद ।
छुप छुप के झांकने पे मजबूर 
तारों की चाहत पे पहरा है चांद ।
दिन भर सोए है थकन से चूर 
रात भर यहां वहां भटका है चांद ।
कभी पापा  की खनकती अठन्नी सा
कभी मां के गजरे सा महका है चांद ।
भीगी पलकों के साए में
ठंडी आग सा दहका है चांद ।
कहीं हुस्न के विसाल सा
कहीं हिज्र का रंग गहरा है चांद ।
रात रात भर जाग कर मांगी थी
उन अधूरी मन्नतों का चेहरा है चांद । 🌙
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