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कुछ इस तरह ज़िंदगी हम गुजारते रहे, कांटो में रहे हर

कुछ इस तरह ज़िंदगी हम गुजारते रहे,
कांटो में रहे हरदम, मगर मुस्कुराते रहे,

इश्क़ में पहली आवाज़ मुझे, उसने ही दी थी,
मगर उसके बाद उम्र भर, हम उसको बुलाते रहे,

महज़ नफ़रत, दर्द, दरारों के बीच रहा है ये सफ़र,
जिसे इश्क़ कहकर हम खुद को, समझाते रहे,

कुछ इस कदर कटा है, एक लम्बा तन्हा वक़्त मेरा,
मरहम भी ख़ुद ही लगा के, हर दर्द हम दबाते रहे...!!

©Vishakha Tripathi
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