सत्तर साल हो गये एक एक करके, सभी को चित किया, अब चित्त शान्त है। ये कैसा एकान्त* है। *एक+अन्त ये जो पहले वाला चित है न वो दरअसल चित्त है। ऐसे ही गल्तियां करते हैं हम सब। यही वो नुक्ता है ज़िन्दगी का जो ज़िन्दगी बदल देता है।