White रूपमाला - मदन छन्द 2122 2122 2122 21 देखने की लालसा से, जा रहा हूँ धाम । जानता रहते वहीं हैं , आज अपने राम ।। दिव्य दर्शन भी मिलेंगे , जो करूंगा ध्यान । हैं वही आराध्य मेरे, मानता भगवान ।। रूप उसने लाख बदले, पर वही पहचान । कृष्ण राधा राम सीता , हम नहीं अंजान ।। रूप कल्की का धरो फिर, और लो अवतार । आप ही हो इस जगत के , आज पालनहार ।। अब नही देरी करो प्रभु , बढ़ गये शैतान । आज करके ध्यान तेरा , माँगते वरदान ।। रोक लो नर जाति को अब , कर रहा संहार । हैं तुम्हारे भक्त सारे , आज इस संसार ।। देव दानव और कण-कण , में तुम्हारा वास । फिर भटकते आज क्यों है , आपके ही दास ।। राह उनको भी दिखाओ , भूलते जो राह । नित्य सेवा साधना में , जो रखे हैं चाह ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR रूपमाला - मदन छन्द 2122 2122 2122 21 देखने की लालसा से, जा रहा हूँ धाम । जानता रहते वहीं हैं , आज अपने राम ।। दिव्य दर्शन भी मिलेंगे , जो करूंगा ध्यान । हैं वही आराध्य मेरे, मानता भगवान ।। रूप उसने लाख बदले, पर वही पहचान ।