दुनिया देख चुकी ताकत सरकारों में, नाम लिखाना पड़ता है सरदारों में, ख़ुद में ढूँढ लिया होता तो मिल जाता, ख़ुशी कहाँ मिलती है अब बाजारों में, कौशल जिनके पास नहीं वो कारीगर, कमियाँ ढूँढ रहे अपने औजारों में, गुज़र रहे दिन-रात भटकने में अब तो, फ़ितरत ख़ुद की पाई है बंजारों में, पैदाइश तो सबकी हुई एक जैसी, इंसानों ने फर्क किया किरदारों में, अच्छाई छुप जाती एक बुराई से, छपती रहती है बातें अखबारों में, खस्ताहाल बयाँ कर पायेगी कैसे, इश्तिहार चिपके हैं जब दीवारों में, राह नहीं आसान यहाँ जीवन पथ की, चलना पड़ता है 'गुंजन' अंगारों में, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #चलना पड़ता है गुंजन अंगारों में#