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दर्द हो रहा है गहरा-गहरा , प्यार किया था पहरा-पहरा

दर्द हो रहा है गहरा-गहरा ,
प्यार किया था पहरा-पहरा।

सोचा न था इश्क की बूंदे,
यूं बरसना बंद हो जाएगी,

ये प्यार का समां 
कभी अंधकार बन जाएगी,

उनकी मासूमियत भी 
छलने का दम रखती है,

मैं कर भी क्या सकता था,
इस खेल में वो माहिर भी है।

दर्द हो रहा है गहरा-गहरा,
प्यार किया था पहरा-पहरा।

©Saurabh Kumar
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