तुम लगाते रहो "पी.के."आग पानी मे। हम लगा देंगे आग हर एक जवानी में। तुम लड़ाते रहो धर्मों की निशानी में। आपका बोया हर बीज मिटाकर नफरत का, प्यार भर देंगे हम हर दिल हर हिदुस्तानी में।। हो समझते सिर्फ किरदार तुम, हमारा गीत कहानी में। असल में हम हैं जो दम भरते हैं हर सच का हर एक रवानी में।। हम ही हैं जो एक करते हैं, एक अखंड कश्मीर से कन्या कुमारी को, हम ही है जो जन्म देते हर एक कहानी में। हम ही हैं जो जन्म दे देते हैं को, लक्ष्मीबाई को हर एक मर्दानी में। हम ही हैं जो ढूंढ लेते हैं वीरांगना, नेतृत्व किरदार झांसी की रानी में। हम ही परिणत कर देते हर मासूम कन्या, को मां दुर्गा, चंडी और भवानी में।। हम ही हैं जो सजीव कर देते कंठ में, स्वरों के रूप को माँ वीणा पाणी में।। हिन्दू केसर की पट्टी। सिख है चक्र तिरंगे का।। मुस्लिम रंग हरे की पट्टी ईसाई श्वेत शांति और चंगे का। इनसे मिल बन गया रूप तिरंगे का।। जय बोलो सब धर्मों की। जय बोलो सत्कर्मो की।। न अजान न काबा काशी। सर्वप्रथम हम भारतवासी।। दे रहे दुहाई निज धर्मों की। पर बू आ रही कुकर्मों की।। हाँ मैं एक भगवाधारी हिन्दू ब्राह्मण हूँ और यह मैं बड़े ही फक्र और स्वाभिमान के साथ कहता हूँ क्योंकि भगवा न सिर्फ हमारी जान शान बल्कि सम्पूर्ण भारत की पहचान है। परन्तु यह कटु सत्य मात्र उन चंद जयचंदों के लिये है जो न सिर्फ जातिवाद और धर्मवाद से हमारे देश की अखंडता और सौहार्द्रता को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहे वल्कि हमारे देश की अस्मिता से खेल कर देश में निवास करने वाले सभी धर्म के भारतीयों भावनाओ से खेल रहे हैं। और जिन्हें दूसरे धर्मों का सम्मान करना तो दूर स्वधर्म का सम्मान करना भी नही आता। ""क्योंकि हमारे बहुत से इष्ट मित्र आदरणीय अनुज, अग्रज भाई, बहन व बुज़ुर्गजन हैं जो दूसरे धर्मों हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई से हैं और न सिर्फ बखूबी अन्य सभी धर्मों का वे सम्मान करते हैं और हम भी उनके धर्म का सम्मान करते हैं। बल्कि अपना अनन्य स्नेह दुलार और प्यार प्रदान कर हमें सद्मार्ग प्रशस्त कर सद्भावनाओं का संचार कर भावनाओं का सम्मान कर राष्ट्र के उत्थान में सहयोग कर सुदृढ़ बनाने में अग्रणी और अग्रगण्य भूमिका निभा रहे । उन सबसे उन सभी की भावनाओ को ठेस न पहुंचाने की मंशा से और उनसे उनकी सदभावनाओं का सम्मान करते हुए क्षमा याचना कर उनकी उनके दिल में हमारे प्रति सद्भावनाओं के लिए हार्दिक आभार।। वे सभी भी किसी न किसी धर्म विशेष से हैं परंतु सर्वप्रथम वे एक भारतीय हैं।। हमारा उद्देश्य किसी धर्म विशेष या व्यक्ति विशेष पर लक्ष्य साधना नही है बल्कि हम अपने धर्म के साथ साथ दूसरे धर्मों का सम्मान भी करना जानते हैं।।"" परंतु देश की अखंडता को धर्म और जाति पर खंड खंड करने के उद्देश्य से राजनीति करने वालों हम भारतीय जन आपके मंसूबों को कामयाब नही होने देंगे।।"" ऐसे निकम्मो के लिए चेतावनी - भरी मेरी रचना --- जय भारत जय भारती।। जिस भगवा से सूरज में लाली। जिसकी छटा है सबसे निराली। वीर पवन सुत का प्यारा रंग। सोहे साजे जिसका अंग अंग।। सम वीरों के लहू की लाली।। रक्त सनी धर अधर जिह्वा मां काली।। कर हुंकार तांडव मां काली।। उनकी बलि है लेने वाली।। जिसने इस तिरंगे की पगड़ी उछाली।। भगवा करता है आगाज। हिदुओं सब मिल दो आवाज।। हम सब हैं भारत की शान। हम सबसे भारत की शान। हम सब भारत की जान। गर्व से बोलो सब यशगान। जय हिंदी जय हिन्दू जय हिंदुस्तान।। जय भगवा जय भगवा राज। जय हिन्दू जय हिन्दू समाज।। जय बजरंगी जय श्रीराम। जय वशिष्ठ जय श्री परशुराम। वो जीना मरना है जी के। जो न जाने निज धर्म को"पी.के."।। आगाज है धर्म का महा संग्राम। सब मिल बोलो जय जय श्रीराम।। हां मैं श्रीराम का वंशज हूँ उनके पद पंकज की रज हूँ। पग पग पर सहे कष्ट भ्रात हित, पिता की आज्ञा में घर त्यागा, खुद भटके दर दर रहे खुले में, जो अब तक न्यायालय में। उन सूर्यवंश के दिनकर प्रभु, श्री राम का ही मैं वंशज हूँ।। प्रशान्त कुमार" पी.के." साहित्य वीर अलंकृत हास्य आशुकवि पाली, हरदोई उत्तरप्रदेश 8948892433 तुम लगाते रहो "पी.के."आग पानी मे। हम लगा देंगे आग हर एक जवानी में। तुम लड़ाते रहो धर्मों की निशानी में। आपका बोया हर बीज मिटाकर नफरत का, प्यार भर देंगे हम हर दिल हर हिदुस्तानी में।। हो समझते सिर्फ किरदार तुम, हमारा गीत कहानी में। असल में हम हैं जो दम भरते हैं