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क्यों जख्म से डरते हो,एक दर्द नया देते हो। मासूम स

क्यों जख्म से डरते हो,एक दर्द नया देते हो।
मासूम से कातिल हो,खंजर भी छिपा देते हो।।
इस इश्क़ की महफिल में,खुद को ही लुटाया है।
हँस-हँसकर जिया हमने, पर अब तुम तो रुला देते हो।।
सपनों के घरोंदे में,तुमने यह आग लगा दी है ।
हाथों में नही माचिस, फिर भी आग लगा देते हो।।

©Shubham Bhardwaj
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