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कुछ नहीं तेरे शहर की शराफत में थोड़ा लहजा लाओ अपनी

कुछ नहीं तेरे शहर की शराफत में
थोड़ा लहजा लाओ अपनी बातो में

तु जो खुद के झुंड पर इतना इतरा रहा है
देखो,चांद अकेले ही चमकता तारो की बस्ती में।

यहां कौन किसको लूटने आया है
दरिया का भी अपना इक किनारा है।

यहां बहुतो हस्ती आये अपनी रस्म अजाने 
भूतले हो गये कश्ती को बचाने में।

मैं कोई नया नहीं जो बच जाऊंगा 
इक दिन मुझे भी मिटना है इसी मिट्टी में।

©Deepak Kumar
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