राजनीति करती रही नुकसान हमारे अरमानों का,
हम आज़ादी लाते रहे वो बंदिशें लगाती रही।
दुश्मन ने तो पीठ दिखा दी देख अपनी एकता,
अपनों को अपनों कि सेना अपनों से लड़ाती रही।
हम आज़ादी लाते रहे वो बंदिशें लगाती रही।
क्यों माने हम धर्मों के बे-ईमानी नारों को,
क्यों ना छाँटे लालच के बेमतलब ख़तपतवारों को,
क्यों हम ख़ुद को धोखा देकर ख़ुश करें ग़द्दारों को,