चाहा बहुत सी बार की अब रोक लू इसको पारे सा है ये वक़्त जो ठहरता है नहीं ये ढूंढ ले दुनिया या जहां छान ले सारा मेरा अस्ल तुम ही हो में तो तब भी ये कहूंगा फिर आके कहेंगे हमे वो मिलता ही नहीं हा जानता हूं फासले बहुत से है शायद हम तुम में फकत दूरियां भी कम तो नहीं है हर बात कहूंगा में पहेली सी बनाकर क्यू हार नहीं मानता दिल कोशिशों के बाद इस दिल में कोई और क्यों उतरता ही नहीं तुम आओ जरा अपने करे मेहमान नवाज़ी ये इसलिए कि रह ना जाए बात यू आधी अब चुप हो कलम तोड़ दे क्या क्या ही बकेगा तू ए ज़ुबैर, दिल से दुआ करता ही नहीं क्यू 100 कहानियों से सब्र करता है नहीं - ज़ुबैर नियारगर #100कहानियां @ZakhmiPoetry