तुम्हे यही पता नहीं कहाँ से आते हो कहाँ जाते हो कौन हो? फिर भी तुम यही कहते रहते हो कि तुम जीवित हो...... और इससे बड़ी बेहोशी क्या होंगी? और इससे बड़ा सोयापन क्या होगा? न पता कहां से आते हो औरन यहपता कहजाते हो? न पता है क्यों हो किसलिए हो? एक लकड़ी क़े टुकड़े की तरह नदी मे बहे चले जाते हो...... न कोई गंतव्य है न कोई दिशा है न कोई बोध है परिस्तिथियां जहां ले जांय वही चलते जाते हो सच मे कहा जाय तो तुम मात्र एक दुर्घटना हो ? ©Parasram Arora कहाँ से आते हो?........