इंसानियत इंसानियत लुप्त हो रहीं कहीं, हैवानियत भी पल रही वहीं। कोई किसी की मदद ना करे, संकट किसी के कोई ना हरे। मौका मिलते ही निकल पड़े, कौन किसकी मदद को खड़े। हैवानियत अब पैर पसार रही, इंसानियत को वो ललकार रही। इंसानियत मुखदर्शक बन खड़ी है, करे क्या अब यही सोच में पड़ी है। कानून व्यवस्था हाथ बांधे खड़ी है, उनको भी अब क्या किसकी पड़ी है। मुश्किल की ही तो अब ये घड़ी है, हाथों में कानून के बेड़ियां पड़ी है। हैवानियत तो अब मुंह फाड़े खड़ी है, इंसानियत के आगे विवशता बड़ी है। कैसे बढ़े मदद को इसी में उलझी है, विकट परिस्थिति है नहीं सुलझी है। तभी कहता हूं इंसानियत कहां रही है, आपसी झगड़े में लहू की धारा बही है। इंसानियत ने ही तब धोखा बहुत है खाया, जब अपनों को ही अपनों से झगड़ते पाया। इसलिए ही इंसानियत अब लुप्त हो रही, क्योंकि वो तो अपनी गरिमा को खो रही। ............................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #इंसानियत #nojotohindi इंसानियत इंसानियत लुप्त हो रहीं कहीं, हैवानियत भी पल रही वहीं। कोई किसी की मदद ना करे,