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मेरे सर पर अब नहीं आसमान मेरा, वक्त और कितने लेगा

मेरे सर पर अब नहीं आसमान मेरा,
वक्त और कितने लेगा इम्तेहान मेरा,
तुम कहते हो रूखा है लफ्ज़ ए बयान मेरा!
एक पन्ना ले गया सारा साबो सामान मेरा,
हो मशरूफ सजाया था एक सपना सुनहरा,
रिश्ते का बटवारा करके तोड़ दिया वादों का घेरा,
अब बिखर गए तो सौदा करने आए हो  ये हिस्सा तेरा वो हिस्सा मेरा !

©sukhwant kumar saket
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