दिख रही थी साहिल पर उश्शाकों की मजलिस तन्हाई ढूंढने को एक दूसरे से किनारा करते हुए। पर कहर ढ़ा रही थी उन पर वक्त की साजिश रेत सी फिसल रही न रुकने का इशारा करते हुए। ये उलझने दिल की यूं बढ़ा रहीं थी कसमकश देख रहे थे इश्क का दिलकश नजारा डरते हुए। बाहों में थामें थे खुशियां पर लग रहे वो बेबस गमों से भर रहें जैसे जिंदगी का इदारा मरते हुए। ©अलका मिश्रा ©alka mishra #Love #उश्शाक