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मैं स्त्री हूं, मैं बेटी हूं। मैं कुर्बानी की वेद

मैं स्त्री हूं, मैं बेटी हूं। 
मैं कुर्बानी की वेदी हूं।
कलयुग, सतयुग, हर युग में इल्जाम मुझी पर आता है।
हर इल्जामों से मेरा सीना छलनी सा हो जाता है।
इन अत्याचारों से ऊपर उठकर मुझको आगे बढ़ना है।
जननी हूं मै, शक्ति हूं मै आगे बढ़ते रहना है।
पीड़ित नहीं सशक्त हूं मैं,  मरी नहीं जीवित हूं मैं,
मुझको आगे बढ़ना है, मुझको आगे बढ़ना है।
                              
 कल्पना हूं,सुनीता हूं, सुषमा हूं मै,
आशा की किरण हूं मै।
हर क्षेत्र में सफल हूं मै, ये गुमान मुझको रहता हैं
ये अभिमान मुझको रहता हैं।
जीवन के हर मोड़ पर कठिनाई तो आती हैं,
स्त्री हो या पुरुष हो, हर मनुष्य ठोकर खाता है।
गिरकर उठना, उठकर गिरना सशक्त हमें बनाता है।
सशक्त हमें बनाता है।

भेद है ये, फरेब है ये, पुरुषों का अहंकार है ये,
कि कह कह कर महिला को अबला कर डाला है।
अबला नहीं सबला हूं मै, ज्योति नहीं ज्वाला हूं मै,
गर समझ सको तो हंसने की वजह और उजाला हूं मै।
हां उजाला हूं मै।  #सशक्त नारी की हुंकार। #collab#yq didi
मैं स्त्री हूं, मैं बेटी हूं। 
मैं कुर्बानी की वेदी हूं।
कलयुग, सतयुग, हर युग में इल्जाम मुझी पर आता है।
हर इल्जामों से मेरा सीना छलनी सा हो जाता है।
इन अत्याचारों से ऊपर उठकर मुझको आगे बढ़ना है।
जननी हूं मै, शक्ति हूं मै आगे बढ़ते रहना है।
पीड़ित नहीं सशक्त हूं मैं,  मरी नहीं जीवित हूं मैं,
मुझको आगे बढ़ना है, मुझको आगे बढ़ना है।
                              
 कल्पना हूं,सुनीता हूं, सुषमा हूं मै,
आशा की किरण हूं मै।
हर क्षेत्र में सफल हूं मै, ये गुमान मुझको रहता हैं
ये अभिमान मुझको रहता हैं।
जीवन के हर मोड़ पर कठिनाई तो आती हैं,
स्त्री हो या पुरुष हो, हर मनुष्य ठोकर खाता है।
गिरकर उठना, उठकर गिरना सशक्त हमें बनाता है।
सशक्त हमें बनाता है।

भेद है ये, फरेब है ये, पुरुषों का अहंकार है ये,
कि कह कह कर महिला को अबला कर डाला है।
अबला नहीं सबला हूं मै, ज्योति नहीं ज्वाला हूं मै,
गर समझ सको तो हंसने की वजह और उजाला हूं मै।
हां उजाला हूं मै।  #सशक्त नारी की हुंकार। #collab#yq didi