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कितनी खूबसूरत है ये डूबती शाम ख़ुद में पिरोए बैठी क

कितनी खूबसूरत है ये डूबती शाम
ख़ुद में पिरोए बैठी कितनी ही लम्हें ख़ास,
आसमां में लाली घटा है बिखरी
सिंदूर जैसे किसी ने माथे पर हो लपेटी,
चुम रहा है झुक कर सूरज धरा को
भुला कर अपने तेज़ को,
चाँद खड़ा दूर इंतेज़ार में
बिखेरने रात्रि आभा को,
ढल गया एक दिन फ़िर
आगाज़ नई सुबह को.

©avinashjha ढलती शाम
कितनी खूबसूरत है ये डूबती शाम
ख़ुद में पिरोए बैठी कितनी ही लम्हें ख़ास,
आसमां में लाली घटा है बिखरी
सिंदूर जैसे किसी ने माथे पर हो लपेटी,
चुम रहा है झुक कर सूरज धरा को
भुला कर अपने तेज़ को,
चाँद खड़ा दूर इंतेज़ार में
बिखेरने रात्रि आभा को,
ढल गया एक दिन फ़िर
आगाज़ नई सुबह को.

©avinashjha ढलती शाम
avinashjha8117

Avinash Jha

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