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धरती की पुकार अब लो तुम मुझे संवार कर ली बहुत मन

 धरती की पुकार

अब लो तुम मुझे संवार
कर ली बहुत मनमानी तुमने
कब तक करोगे नादानी
तुम्हारे ही बुजुर्गों ने दी थी
मुझे इज्जत, किया था मेरा
वंदन, मैं भी बहुत इतराई।
पर आज द्रवित है मन मेरा,
इतनी कुल्हाड़ी खाई, कि लगता है
पृथ्वी से होगी मेरी जुदाई।
संभल जा मानव मेरे सिवा
न होगा तेरा कोई और तू भी
होगा धरा साही, मुझसे बने हैं
ये हवा, पानी, नभ के संचालन
संभाल मुझे नही तो तेरी छवि धुंधलाई।।

©Sunita
  धरती की पुकार
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Sunita

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धरती की पुकार #कविता

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