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कहीं पर बांसुरी बजती, कहीं पर रास होता है। हमारे

कहीं पर बांसुरी बजती,  कहीं पर रास होता है।
हमारे उर बसी धुन का, मधुर अहसास होता है।
कभी मटकी नयी फोड़ी, कभी माखन चुराया है।
कन्हैया लाल को फिर भी, सभी ने उर बसाया है।

©Pradeep Sharma
  #Poetry