~ धर्म बना परमाणु हथियार ~ _____________ मानवता है शर्मसार कहीं नहीं है शुद्ध विचार । धर्म विषय भी बन गया है परमाणु जैसा हथियार ।। रो रही धरा, ना रहा जोर मिले न कोई ओर-छोर । भक्षक बन कर काट रहें जब रक्षक ही बन गए चोर ।। मिले नही कोई उपचार नृशंश रोग है भ्रष्टाचार । वैद्य,ओझा ही अच्छे थे डॉक्टर कर रहे लूटमार ।। निश्चित नहीं जीवन की डोर फिर भी भाग रहे चहुं ओर । जियें नही पल भर सुकून से मिथ्या मचा रहें हैं शोर ।। है कहां ? धर्म,कोई दे प्रमाण मरघट तक है जीवन का सार । कर्म करे जो मानवता का वही धर्म का सर्वे-सार ।। -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) ~ धर्म बना परमाणु हथियार ~ ________________________ मानवता है शर्मसार कहीं नहीं है शुद्ध विचार । धर्म विषय भी बन गया है परमाणु जैसा हथियार ।।