सर्व मान्य सिद्ध हैँ कि लोहा लोहे को काटता हैँ पर इस बात मे भी भरपूर सचाई हैँ कि दुख की पर्याप्त मात्रा ली जय हर दिन तो दुखी को निर्वाण मुक्ति औऱ केवल्य का पुण्य मिल सकता हैँ फिर उसे बोध हो जाता हैँ कि जगत मिथ्या हैँ ब्रह्म सत्य हैँ जगत मिथ्या ब्रह्म सत्य....