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सफेद दरख्त अब उदास हैं जिन परिंदों के घर बनाये थे

सफेद दरख्त अब उदास हैं 
जिन परिंदों के घर बनाये थे
वो अपना आशियाना ले उड़ चले।
                 सफेद दरख्त अब तन्हा हैं 
                 करारे करारे हरे गुलाबी पत्ते जो झड़ गये
                 परिंदो के पर उनके हाथों से छूट गये।
सफेद दरख्त अब लाचार हैं  
छाव नहीं है उनके तले 
अब परिंदों को वो बोझ लगने लगे।
                सफेद दरख्त अब असहाय हैं 
                बदन काँपता है जोड़ों में टीस हैं 
                अब वो परिंदों के लिए काम के नहीं रहे।
सफेद दरख्त पहले ऐसे न थे
जब युवा थे, सपनों से भरपूर थे
रंग बिरंगी ख्वाहिशों से हरे-भरे,फूले-फले,थे।
                आये जब परिंदे गर्भ और जीवन में
                 तो वो अपनी सुधबुध भूल गये
                लगा उन्हें ये कि अमृत मिल गया उन्हें।
अपनी संतान पे कुर्बान कर दी दरख्तों ने
सम्पत्ति,खुशी,लम्हें, सपने और ख्वाहिशें
धीरे-धीरे वो खाली और खोखले हो गये।
              जरा भी हौले हौले जकड़ रही थी उनको
                अंत: जर्जर हो 
              वो सफेद दरख्त अब हो गये 
उदास,तन्हा लाचार,असहाय,बेबस
क्योंकि वो अब बूढ़े हो गये
क्या इस लिए बेटों ने छोड़ दिया इन्हें।
                  निकाल फेंक दिया अपने घर से जीवन से
                   सफेद दरखस्तों को जाने कैसे 
                   जो कभी उनके माँ-बाप हुआ करते थे।
उनके आदर्श,उनके परमात्मा,उनके जिन्ह,
ख्वाबों के मसीहा,सपने पूरे करने वाले
अब परिंदों के लिये सफेद दरख्त पराये हो गये ।
                हाँ सफेद दरख्त अब   उदास,लाचार,बेबस,तन्हा हो गये हैं।
पारुल शर्मा #NojotoQuote सफेद दरख्त अब उदास हैं 
जिन परिंदों के घर बनाये थे
वो अपना आशियाना ले उड़ चले।
                 सफेद दरख्त अब तन्हा हैं 
                 करारे करारे हरे गुलाबी पत्ते जो झड़ गये
                 परिंदो के पर उनके हाथों से छूट गये।
सफेद दरख्त अब लाचार हैं  
छाव नहीं है उनके तले
सफेद दरख्त अब उदास हैं 
जिन परिंदों के घर बनाये थे
वो अपना आशियाना ले उड़ चले।
                 सफेद दरख्त अब तन्हा हैं 
                 करारे करारे हरे गुलाबी पत्ते जो झड़ गये
                 परिंदो के पर उनके हाथों से छूट गये।
सफेद दरख्त अब लाचार हैं  
छाव नहीं है उनके तले 
अब परिंदों को वो बोझ लगने लगे।
                सफेद दरख्त अब असहाय हैं 
                बदन काँपता है जोड़ों में टीस हैं 
                अब वो परिंदों के लिए काम के नहीं रहे।
सफेद दरख्त पहले ऐसे न थे
जब युवा थे, सपनों से भरपूर थे
रंग बिरंगी ख्वाहिशों से हरे-भरे,फूले-फले,थे।
                आये जब परिंदे गर्भ और जीवन में
                 तो वो अपनी सुधबुध भूल गये
                लगा उन्हें ये कि अमृत मिल गया उन्हें।
अपनी संतान पे कुर्बान कर दी दरख्तों ने
सम्पत्ति,खुशी,लम्हें, सपने और ख्वाहिशें
धीरे-धीरे वो खाली और खोखले हो गये।
              जरा भी हौले हौले जकड़ रही थी उनको
                अंत: जर्जर हो 
              वो सफेद दरख्त अब हो गये 
उदास,तन्हा लाचार,असहाय,बेबस
क्योंकि वो अब बूढ़े हो गये
क्या इस लिए बेटों ने छोड़ दिया इन्हें।
                  निकाल फेंक दिया अपने घर से जीवन से
                   सफेद दरखस्तों को जाने कैसे 
                   जो कभी उनके माँ-बाप हुआ करते थे।
उनके आदर्श,उनके परमात्मा,उनके जिन्ह,
ख्वाबों के मसीहा,सपने पूरे करने वाले
अब परिंदों के लिये सफेद दरख्त पराये हो गये ।
                हाँ सफेद दरख्त अब   उदास,लाचार,बेबस,तन्हा हो गये हैं।
पारुल शर्मा #NojotoQuote सफेद दरख्त अब उदास हैं 
जिन परिंदों के घर बनाये थे
वो अपना आशियाना ले उड़ चले।
                 सफेद दरख्त अब तन्हा हैं 
                 करारे करारे हरे गुलाबी पत्ते जो झड़ गये
                 परिंदो के पर उनके हाथों से छूट गये।
सफेद दरख्त अब लाचार हैं  
छाव नहीं है उनके तले
parulsharma3727

Parul Sharma

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