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तारो की भांति जलती है, सड़को के किनारों पर । लंबे ल

तारो की भांति जलती है,
सड़को के किनारों पर ।
लंबे लंबे खम्बो पर,
रातो में।
वो चमकता था रातो में ,
कई साल पहले।
कही अदृश्य हो गया है,
रह गया है कविता और यादों में।
आज कल सहलाती बहुत कम है,
ये हवाय।
माहिर हो गई है ,
धूल के थपेड़े लगाने में ।
लगता है , खराब हो गई है आंखे मेरी ।
या धुंध है ज्यादा, आसमानों में।
दम घुटता है अब मेरा,
दिल्ली शहर में।
लग रहा है जैसे ,
रह रहे है कारखानों मे #प्रदूषण #यकदीदी #यकबाबा #यककोट
तारो की भांति जलती है,
सड़को के किनारों पर ।
लंबे लंबे खम्बो पर,
रातो में।
वो चमकता था रातो में ,
कई साल पहले।
कही अदृश्य हो गया है,
रह गया है कविता और यादों में।
आज कल सहलाती बहुत कम है,
ये हवाय।
माहिर हो गई है ,
धूल के थपेड़े लगाने में ।
लगता है , खराब हो गई है आंखे मेरी ।
या धुंध है ज्यादा, आसमानों में।
दम घुटता है अब मेरा,
दिल्ली शहर में।
लग रहा है जैसे ,
रह रहे है कारखानों मे #प्रदूषण #यकदीदी #यकबाबा #यककोट