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अपने ख़्वाहिशों की, उड़ान को कैसे रोकूँ, गर उ

अपने  ख़्वाहिशों  की, उड़ान  को  कैसे  रोकूँ,
गर उड़  ना पाया तो, टूटकर  बिखर जाएगी।

अधिक नहीं  कम ही सही, चाहतें मेरी भी है,
गर दमन किया चाहतों का तो ये मर जाएगी।

पंख हैं  मेरे भी, उन्मुक्त  गगन में  उड़ना चाहूँ,
हकीकत में नहीं, पर सपनों की  उड़ान दे दो।

समूचे  आसमान पर है, एकाधिकार  तुम्हारा,
हमें  केवल  एक  मुट्ठी  भर, आसमान  दे दो।  🎀 प्रतियोगिता संख्या- 28

🎀 शीर्षक:- ""एक मुट्ठी आसमान""

🎀 शब्द सीमा नहीं है।

🎀 इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
अपने  ख़्वाहिशों  की, उड़ान  को  कैसे  रोकूँ,
गर उड़  ना पाया तो, टूटकर  बिखर जाएगी।

अधिक नहीं  कम ही सही, चाहतें मेरी भी है,
गर दमन किया चाहतों का तो ये मर जाएगी।

पंख हैं  मेरे भी, उन्मुक्त  गगन में  उड़ना चाहूँ,
हकीकत में नहीं, पर सपनों की  उड़ान दे दो।

समूचे  आसमान पर है, एकाधिकार  तुम्हारा,
हमें  केवल  एक  मुट्ठी  भर, आसमान  दे दो।  🎀 प्रतियोगिता संख्या- 28

🎀 शीर्षक:- ""एक मुट्ठी आसमान""

🎀 शब्द सीमा नहीं है।

🎀 इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।