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वो मेरे वजूद को मिटाता जा रहा है कमबख्त दिल में आ

वो मेरे वजूद को मिटाता जा रहा है

कमबख्त दिल में आता जा रहा है।


खिड़कियों से थोड़ी रोशनी आने लगी थी

वो जालिम पर्दे गिराता जा रहा है।


मेरे झुमके से अठखेलियां करती हैं सदायें

मेरी जुल्फ की महक से महकती हैं फिजाएं।


तपस्सुम देख आईना भी मुझसे पूछ बैठा है!

वो कौन है जो दिल में समाता जा रहा है।


बड़ी हिफाज़त से मैंने संभाल रखे थे आंसू

वो हर एक कतरे को पिघलाता जा रहा है।

©#काव्यार्पण
  #shayari_by_pragya_Shukla

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